जीवन के विशाल सागर में,
जहाँ अंधेरा राह रोके,
गुरु वह दीपक, जो प्रज्ज्वलित हो,
हर कदम पर मार्ग दिखाए।
न ज्ञान का केवल दाता वह,
न केवल विद्या का स्रोत,
वह शिल्पकार है व्यक्तित्व का,
जीवन का पथप्रदर्शक, संबल अखंड।
सन् उन्नीस सौ अट्ठासी में,
नवम कक्षा की वह पहली मुलाकात,
गुरुजी के आशीर्वचनों ने,
मेरे मन में जागृत किया प्रकाश।
उनका अनुशासन, स्नेहमय स्वर,
कभी डाँट, कभी समझाइश,
कभी हौसला, कभी प्रेरणा,
हर पल बनाया जीवन को विशेष।
समय की रफ्तार ने,
छीन लिए छत्तीस बसंत,
पर शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर,
पुनः मिला गुरु का सान्निध्य अनघट।
करैरा से कटनी, फिर मझगवां,
पचहत्तर किलोमीटर की यात्रा अकेले,
थकान थी, पर गुरु दर्शन की लालसा,
हर कष्ट को कर गई हल्का।
चरणों में बैठते ही समय ठहरा,
पुरानी स्मृतियाँ लौट आईं,
वह कक्षा, वह अनुशासन,
वह स्नेह, जो आज भी हृदय समाई।
गुरुजी ने पूछा, “धनीराम, प्रीति कहाँ?”
यादें ताज़ा, मन हुआ पुराना,
वह पाठ, वह डाँट, वह स्नेह भरा स्वर,
हर पल जीवंत, जैसे बीता न कोई युगाना।
गुरु-शिष्य का बंधन,
नहीं केवल किताबों का साथ,
यह आत्मा से आत्मा का मिलन,
जो समय की सीमाओं से परे अनघट।
शिक्षक दिवस का यह मिलन,
नहीं औपचारिकता का क्षण,
यह श्रद्धा का पर्व, स्मृतियों का उत्सव,
कृतज्ञता का अनमोल धन।
हृदय से नमन है गुरु को,
प्रार्थना है, आशीष सदा बरसे,
गुरु बिन जीवन अधूरा,
गुरु संग जीवन, स्वयं में उपहार विशेष।
अधिगामी
महेश कुमार लोधी (शिक्षक)
ब्लॉक अध्यक्ष
मध्य प्रदेश राज्य कर्मचारी संघ
इकाई करैरा। पत्रकार राजेन्द्र गुप्ता मोनो,8435495303