शिवपुरी,हिन्दी सिर्फ़ संवाद का सेतु नहीं, भारतीय संस्कृति की संवाहक भी है'हिन्दी का वर्तमान और वर्तमान की हिन्दी' विषय पर परिचर्चा सम्पन्न।
हिन्दी दिवस के अवसर पर म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शिवपुरी इकाई ने 'हिन्दी का वर्तमान और वर्तमान की हिन्दी' विषय पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया। नगर के झॉंसी तिराहे स्थित 'इंडियन फोर्स अकादमी' में आयोजित इस परिचर्चा का आरम्भ करते हुए लेखक जाहिद खान ने कहा, 14 सितम्बर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। और 14 सितम्बर 1953 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 सितम्बर को राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। तब से ही हर वर्ष यह दिन पूरे देश में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा, हिन्दी का वर्तमान आश्वस्तिदायक और भविष्य उज्जवल है। पूरी दुनिया में हिन्दी का विस्तार हुआ है। म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन शिवपुरी इकाई के सचिव लेखक—पत्रकार सुनील व्यास ने कहा आजादी के पूर्व से ही हिन्दी का हमारे सामाजिक परिवेश पर काफी प्रभाव रहा है। भारतेन्दु युग में हिन्दी भाषी अखबारों की शुरूआत ने जो गति पकड़ी, वो द्विवेदी युग से होते हुए देश की आजादी तक अपनी भूमिका का निर्वहन करते रहे। उन्होंने कहा, आजादी की लड़ाई में संचार माध्यम के रूप में हिन्दी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान तो रहा ही, बल्कि वर्तमान युग में भी पूरे विश्व में हिन्दी अपनी विशिष्ट जगह बनाए हुए है।कवि, ग़ज़लकार रामकृष्ण मोर्य ने कहा, हमारी नई पीढ़ी को सभी भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए, लेकिन व्यवहार में वे अनिवार्य रूप से अपनी मातृभाषा हिन्दी का उपयोग करें। कवि हेमलता चौधरी ने परिचर्चा में अपनी बात का प्रारंभ कवितामय तरीक़े से किया। उन्होंने कहा, 'निज अनुभव के बलबूते पर नये सृजन आधार बनाएं/सपनों को साकार करें और हिन्दी को समृद्ध बनाएं।' उन्होंने कहा, हिन्दी तभी प्रतिष्ठित होगी, जब हम इसके लिए सतत् प्रयत्नशील होंगे। अच्छी बात यह है कि धीरे—धीरे ही सही, हिन्दी रोजगार की भाषा बनती जा रही है। म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन शिवपुरी इकाई के अध्यक्ष कवि, गीतकार विनय प्रकाश जैन 'नीरव' ने परिचर्चा को शीर्ष पर ले जाते हुए कहा, भाषा सिर्फ़ संवाद का सेतु नहीं है, बल्कि वह संस्कृति की संवाहक, साहित्य की संवेदना और लोक जीवन के विविध रंगों का समन्वय होती है। इस दृष्टि से हिन्दी बहुत समृद्ध भाषा है। यही कारण है कि वर्तमान में इसका प्रयोग संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा सूचना प्रोद्योगिकी में समान रूप से हो रहा है। लेखक, आलोचक प्रोफेसर पुनीत कुमार ने परिचर्चा का समापन करते हुए कहा, हिन्दी को लेकर हमारे मन में किसी प्रकार की हीन भावना नहीं होना चाहिए। हिन्दी एक सम्पूर्ण भाषा है। इसमें अभिव्यक्ति बहुत सरल ढंग से हो सकती है। उन्होंने कहा, हिन्दी का विकास दृढ़ इच्छाशक्ति से ही सम्भव हो सकता है। परिचर्चा के समापन पर 'इंडियन फोर्स अकादमी' के संचालक महेन्द्र सिंह ने अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा, आशा है कि हिन्दी दिवस पर आयोजित यह परिचर्चा विद्यार्थियों के लिए लाभदायक होगी। वे हिन्दी की बारीकियों और इस भाषा की उपयोगिता से अच्छी प्रकार परिचित हुए होंगे।
पत्रकार राजेन्द्र गुप्ता मोनं 8435495303